Ghazal Shayari -118
Sad Ghazal Shayari by Guest: Sakshi Verma 'Aabshar'
Yeh Bewafa Par Aitbaar Humara Na Jaaye...
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Yeh Bewafa Par Aitbaar Humara Na Jaaye,
Yeh *Andaaz-E-Muqarna Tumhara Na Jaaye,
Zaroorat Hai, Aadat Hai Ya Fitrat Meri,
Bagair Mohabbat Ek Pal Guzara Na Jaye,
Bulata Tha Woh Hume Aise, Asar Yeh Hua,
Gair Bulaye Toh Dil-E-Bechara Na Jaaye,
Maut Ki Aarzoo Me Jeete Hain Aajkal,
Mera Jeena Zindagi Ko Bhi Gawara Na Jaaye,
Woh *Dard-O-Marham-E-Dard Donon De Gaya,
Par Uska Marham Dard Mein Utara Na Jaaye,
Is Qadar Khamosh Kar Gayi Teri *Daga,
Ki Humse Wafa Ko Bhi Pukara Na Jaaye,
Kitne Chehre Benaqab Huye Humare Aage,
Par Meri Mehfil Se Tera Nazara Na Jaaye,
Barbaad Kar Diya Hai Ishq Ne Ab Yun Hume,
Ki Is Raah Pe 'Aabshar' Dobara Na Jaaye...
Word Meanings -
Andaaz-E-Muqarna = Style Of Denying
Dard-O-Marham-E-Dard = Pain And The Medicine Of Pain
Daga = Deceit
Must Read:- Keh Do Samandar Se Lehron Ko Sambhaal Kar | Sad Shayari
यह बेवफा पर ऐतबार हमारा न जाए,
यह *अंदाज़-ऐ-मुकरना तुम्हारा न जाए,
ज़रुरत है, आदत है या फितरत मेरी,
बगैर मोहब्बत एक पल गुज़ारा न जाए,
बुलाता था वह हमें ऐसे, असर यह हुआ,
गैर बुलाये तो दिल-ऐ-बेचारा न जाए,
मौत की आरज़ू में जीते हैं आजकल,
मेरा जीना ज़िंदगी को भी गवारा न जाए,
वह *दर्द-औ-मरहम-ऐ-दर्द दोनों दे गया,
पर उसका मरहम दर्द में उतारा न जाए,
इस क़दर खामोश कर गयी तेरी *दग़ा,
की हमसे वफ़ा को भी पुकारा न जाए,
कितने चेहरे बेनकाब हुए हमारे आगे,
पर मेरी महफ़िल से तेरा नज़ारा न जाए,
बर्बाद कर दिया है इश्क़ ने अब यूँ हमें,
की इस राह पे 'आबशार' दोबारा न जाए...
दर्द-औ-मरहम-ऐ-दर्द = दर्द और दर्द की दवा
दग़ा = छल
Dard-O-Marham-E-Dard = Pain And The Medicine Of Pain
Daga = Deceit
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शायरी ग़ज़ल -118
सेड ग़ज़ल शायरी द्वारा: साक्षी वर्मा 'आबशार'यह बेवफा पर ऐतबार हमारा न जाए...
यह बेवफा पर ऐतबार हमारा न जाए,
यह *अंदाज़-ऐ-मुकरना तुम्हारा न जाए,
ज़रुरत है, आदत है या फितरत मेरी,
बगैर मोहब्बत एक पल गुज़ारा न जाए,
बुलाता था वह हमें ऐसे, असर यह हुआ,
गैर बुलाये तो दिल-ऐ-बेचारा न जाए,
मौत की आरज़ू में जीते हैं आजकल,
मेरा जीना ज़िंदगी को भी गवारा न जाए,
वह *दर्द-औ-मरहम-ऐ-दर्द दोनों दे गया,
पर उसका मरहम दर्द में उतारा न जाए,
इस क़दर खामोश कर गयी तेरी *दग़ा,
की हमसे वफ़ा को भी पुकारा न जाए,
कितने चेहरे बेनकाब हुए हमारे आगे,
पर मेरी महफ़िल से तेरा नज़ारा न जाए,
बर्बाद कर दिया है इश्क़ ने अब यूँ हमें,
की इस राह पे 'आबशार' दोबारा न जाए...
शब्दार्थ-
अंदाज़-ऐ-मुकरना = इनकार करने की शैलीदर्द-औ-मरहम-ऐ-दर्द = दर्द और दर्द की दवा
दग़ा = छल
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