Ghazal Shayari -18
Simple Ghazal Shayari by: SHAAZMain Musafir Hun Chalta Ja Raha Hun...
Main Musafir Hun Chalta Ja Raha Hun,
Main Raahi Hun Raasta Apna Bana Raha Hun,
Kabhi Na Kabhi To Manjil Mil Hi Jaaegi Mujhe,
Umeed Ki Roshni Se Main Andhera Mita Raha Hun,
Main Musafir Hun Chalta Ja Raha Hun,
Ban Ke Joker Main Sabko Hansa Raha Hun,
Jaane Kaise-Kaise Kar-tab Main Dikha Raha Hun,
Khush Dekh Kar Kisi Ko, Sakoon Milta Hai Bahut,
Main Logon Ki Khushi Mein Gam Apna Bhula Raha Hun,
Main Musafir Hun Chalta Ja Raha Hun,
Kabhi Isko To Kabhi Usko Humraahi Main Bana Raha Hun,
Jo Bhi Mil Jaata Hai Usi Ke Sang Main Chalta Ja Raha Hun,
Mere Liye Saadhu Kya Lutera Kya,
Main To Sab Mein Khudh Ko Hi Pa Raha Hun,
Main Musafir Hun Chalta Ja Raha Hun,
Zindagi Imtihaan Le Rahi Hai Main Diye Ja Raha Hun,
Kabhi Jaam To Kabhi Ashqon Ko Apne Piye Ja Raha Hun,
Uppar Waala Aajmaa Raha Hai Mujko,
Main Bhi Khudh Ko Saabit Kiye Ja Raha Hun,
Main Musafir Hun Chalta Ja Raha Hun...
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लम्बी शायरी ग़ज़ल -18
सिंपल ग़ज़ल शायरी द्वारा: शाज़मैं मुसाफिर हूँ चलता जा रहा हूँ...
मैं मुसाफिर हूँ चलता जा रहा हूँ,
मैं राही हूँ रास्ता अपना बना रहा हूँ,
कभी न कभी तो मंजिल मिल ही जाएगी मुझे,
उम्मीद की रौशनी से मैं अँधेरा मिटा रहा हूँ,
मैं मुसाफिर हूँ चलता जा रहा हूँ,
बन के जोकर मैं सबको हँसा रहा हूँ,
जाने कैसे-कैसे करतब मैं दिखा रहा हूँ,
खुश देख कर किसी को, सकून मिलता है बहुत,
मैं लोगों की ख़ुशी में गम अपना भुला रहा हूँ,
मैं मुसाफिर हूँ चलता जा रहा हूँ,
कभी इसको तो कभी उसको हमराही मैं बना रहा हूँ,
जो भी मिल जाता है उसी के संग मैं चलता जा रहा हूँ,
मेरे लिए साधू क्या लुटेरा क्या,
मैं तो सब में खुद को ही पा रहा हूँ,
मैं मुसाफिर हूँ चलता जा रहा हूँ,
ज़िंदगी इम्तिहान ले रही है मैं दिये जा रहा हूँ,
कभी जाम तो कभी अश्क़ों को अपने पिए जा रहा हूँ,
ऊपर वाला आजमा रहा है मुझको,
मैं भी खुद को साबित किये जा रहा हूँ,
मैं मुसाफिर हूँ चलता जा रहा हूँ...
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